
Lahsun Ki Kheti Kaise Karen : लहसुन की खेती करने का सही तरीका क्या है? जिसकी वजह से लहसुन की पैदावार और भी ज्यादा हो
Lahsun Ki Kheti Kaise Karen : लहसुन एक ऐसी फसल है जो न सिर्फ हमारे रसोई घर में स्वाद बढ़ाने का काम करती है, बल्कि औषधीय गुणों के कारण भी इसकी बाजार में काफी मांग रहती है। अगर आप किसान हैं और पहली बार लहसुन की खेती करने का सोच रहे हैं, तो सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि यह कोई सामान्य सब्जी नहीं है। इसकी खेती में मेहनत तो लगती है, लेकिन अगर सही तरीके से की जाए तो मुनाफा भी भरपूर मिलता है। मैंने खुद अपने खेत में लहसुन की फसल ली है, और इस अनुभव से आपको बताना चाहता हूं कि किस तरह से आप भी इसकी खेती में सफलता हासिल कर सकते हैं।
लहसुन की खेती के लिए सबसे जरूरी चीज है मिट्टी का सही चुनाव। मेरी जमीन दोमट मिट्टी वाली है जिसमें जल निकासी की व्यवस्था अच्छी है, और यही वजह है कि मेरी लहसुन की फसल हमेशा अच्छी रहती है। लहसुन ऐसी जमीन में अच्छा फलता है जिसमें नमी हो लेकिन पानी ज्यादा देर तक जमा न रहे। इसकी जड़ें सतह के करीब होती हैं, इसलिए अगर पानी रुक जाए तो फसल सड़ जाती है। मैंने सीखा है कि खेत की अच्छी जुताई और समय-समय पर मिट्टी को उलट-पलट करने से जमीन नरम बनी रहती है और फसल को सही पोषण मिलता है।
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लहसुन की बुवाई का सही समय अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है। मैंने जब पहली बार लहसुन बोया था, तब मुझे यही बताया गया था कि ज्यादा जल्दी या देरी करने से फसल का उत्पादन कम हो जाता है। बीज के रूप में हम लहसुन की कली का इस्तेमाल करते हैं। एक बात का ध्यान हमेशा रखना चाहिए कि जिस कली को आप बोने जा रहे हैं, वह सड़ी-गली न हो, और अच्छी तरह सूखी हुई हो। बीज से पहले मैंने इन्हें कुछ घंटों के लिए धूप में रखा ताकि इनमें नमी न रहे और फंगस न लगे।
जब आप खेत तैयार कर लेते हैं और बीज भी चुन लेते हैं, तो बुवाई करते समय एक बात का विशेष ध्यान रखें कि कली का नुकीला सिरा ऊपर की तरफ हो। अगर उलटा बो दिया गया तो पौधा जमीन से निकल ही नहीं पाएगा। मैंने खुद जब शुरू-शुरू में लापरवाही की थी तो काफी कलियां जमीन में ही खराब हो गई थीं। इसलिए बाद में मैंने खुद हर कली को सही दिशा में लगाना शुरू किया।
खेत की देखभाल भी उतनी ही जरूरी होती है जितनी बुवाई। लहसुन को लगभग 120 से 150 दिन में फसल मिलती है। इस दौरान मैंने देखा है कि सबसे ज्यादा ध्यान हमें सिंचाई और निराई-गुड़ाई पर देना होता है। शुरू में हर 10-12 दिन में एक बार सिंचाई करनी पड़ती है। लेकिन जैसे-जैसे पौधा बड़ा होता है, जरूरत के हिसाब से पानी देना होता है। अगर ठंड ज्यादा हो और ओस पड़ती हो, तो पानी कम देना चाहिए क्योंकि ओस से पहले ही मिट्टी में नमी बनी रहती है।
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निराई-गुड़ाई भी समय पर होनी चाहिए। मैंने हर 20-25 दिन के अंतराल में खेत में घुसकर खुद निराई की है ताकि खेत में कोई भी घास-फूस पौधों की बढ़वार में रुकावट न बन सके। साथ ही, जैविक खाद का उपयोग करने से फसल की गुणवत्ता बढ़ती है। मैंने गोबर की खाद और वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल किया, जिससे मेरी फसल की गांठें मजबूत और आकार में अच्छी बनीं।
जब पौधों की पत्तियां पीली होकर नीचे झुकने लगें, तो समझ जाइए कि आपकी फसल पक चुकी है। कटाई करते समय मैंने देखा है कि जल्दबाजी नुकसान कर सकती है। इसलिए मैंने फसल को पूरी तरह सूखने दिया और फिर धीरे-धीरे निकालना शुरू किया। एक बात जो मैंने अनुभव से सीखी है वो यह है कि फसल निकालने के बाद उसे सीधे धूप में नहीं सुखाना चाहिए, वरना लहसुन की गांठें फट जाती हैं। मैंने छायादार जगह पर फैला कर सुखाया, जिससे फसल ज्यादा दिन तक खराब नहीं हुई।
अंत में, बाजार में बेचने से पहले फसल को छांटना बहुत जरूरी होता है। अच्छी गुणवत्ता के लहसुन का दाम हमेशा ज्यादा मिलता है। मैंने बड़े-बड़े व्यापारी से सीधा संपर्क किया और मंडी से ज्यादा कीमत पाई। लहसुन की खेती में धैर्य की जरूरत होती है, लेकिन अगर आप मेहनत और समझदारी से काम करें, तो यह फसल आपको निराश नहीं करेगी। मेरा अनुभव कहता है कि एक बार अगर इसकी खेती में हाथ जम गया, तो यह फसल आपकी कमाई का एक मजबूत जरिया बन सकती है।
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